जनजातीय महिलाओं के अधिकार एवं सामाजिक सुरक्षा
जनजातीय समाज एवं पारिवारिक जीवन में महिलाएँ न केवल पुरुषों को कृषि, वनों से उत्पाद संकलित करने, बाजार से समान खरीदने या बेचने में सक्रिय सहायता प्रदान करती हैं, अपितु बच्चों की देखभाल करने तथा अन्य पारिवारिक दायित्वों का निर्वहन करने में भी उनकी भूमिका काफी अहम् मानी जाती है।
आज भी जनजातीय समाज में महिलाओं को किसी अजनबी के साथ विवाह करने के लिए विवश नहीं किया जाता है। विवाह में उसकी राय अन्तिम मानी जाती है। विवाह के समय लड़कियों के माता-पिता को हिन्दू एवं अनेक अन्य सम्प्रदायों में प्रचलित दहेज भी नहीं देना पड़ता है। इसके विपरीत, अनेक जनजातियों में तो विवाह का खर्चा भी वर पक्ष द्वारा किया जाता है। जनजातियों में वधू मूल्य का प्रचलन भी उनको प्राप्त अधिकारों का ही द्योतक है। जनजातियों में बाल विवाहों को हतोत्साहित किया जाता है तथा जनजातीय समाज में ऐसे विवाह नगण्य ही हैं। लड़कियों को अपने जीवन साथी के चयन की अधिक स्वतन्त्रता भी उनको मिले बराबर के अधिकारों की द्योतक है। अनेक जनजातियों में वर को विवाह के एवज में लड़की के घर सेवा भी प्रदान करनी पड़ती है।
जनजातीय महिलाओ को प्राप्त अधिकारों में सबसे अच्छी बात यह है कि परिवार के मुखिया को घर के संचालन के अधिकार प्राप्त होने के बावजूद वह परिवार में पति के बराबर की सहभागिनी मानी जाती है। विभिन्न संस्कारों, सामाजिक उत्सवों, सामाजिक गतिविधियों में सहभागी होने तथा घर की देखभाल करने से सम्बन्धित सभी अधिकार उसे प्राप्त होते हैं। खरिया जनजाति में यद्यपि सम्पत्ति का विभाजन तथा उत्तराधिकार पुरुषरेखीय होता है तथापि पुत्रविहीन विधवा को, अपने जीवनयापन हेतु अपने मृत पति की सम्पत्ति का कुछ हिस्सा दिया जाता है।
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यह सही है कि मातृवंशीय जनजातियों में महिलाओं को पितृवंशीय जनजाति की महिलाओं से अधिक अधिकार प्राप्त होते हैं, तथापि पितृवंशीय जनजातियों में भी कुछ महिलाओं को काफी अधिकार प्राप्त होने के बावजूद सामान्य रूप से जनजातीय महिलाओं को भी अपने अधिकारों के लिए संघर्ष करना पड़ रहा है। सरकार जनजातीय महिलाओं के लिए सशक्तिकरण हेतु ‘आदिवासी महिला सशक्तिकरण योजना’ चला रही है जिसके अन्तर्गत अनुसूचित जनजाति की महिलाओं के आर्थिक विकास के लिए रियायती ब्याज दर पर धनराशि दी जाती है। इसी तरह छात्रावासों के निर्माण पर विशेष बल दिया जा रहा है। व्यावसायिक प्रशिक्षण द्वारा भी जनजातीय महिलाओं के सशक्तिकरण की ओर विशेष ध्यान दिया जा रहा है।
आधुनिक युग में जैसे-जैसे जनजातियों बाहरी जगत के सम्पर्क में आती जा रहीं हैं, वैसे-वैसे उनके शोषण की घटनाओं में वृद्धि होने लगी है तथा उनमें भी असुरक्षा की भावना विकसित होने लगी है। वस्तुतः जनजातियों में शिक्षा के अभाव में बाहरी लोगों द्वारा जनजातीय महिलाओं के शोषण की घटनाओं में वृद्धि के प्रति सम्बन्धित सरकारें सचेत हैं तथा इसकी रोकथाम हेतु यथा सम्भव प्रयास भी कर रही हैं। हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि हिन्दू जातियों के सम्पर्क के कारण जनजातियों में भी बुराइयों का समावेश होने लगा है जिससे हिन्दू महिलाएँ सदियों तक प्रसित रही हैं। फिर भी, जनजातीय महिलाएं अन्य महिलाओं की तुलना में आज भी अधिक सुरक्षित हैं।
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