चहमान शासक अर्णोराज के विषय में आप क्या जानते हैं? उसकी उपलब्धियों

चहमान शासक अर्णोराज

चहमान शासक अर्णोराज अजयराज का पुत्र था। उसने लगभग 20 वर्षो तक (1130 1150 ई.) तक शासन किया। वीराज विजय’ से ज्ञात होता है कि अजयराज ने स्वयं उसे गद्दी पर बैठाया था। अर्णोराज एक शक्तिशाली और महत्वकांक्षी नरेश सिद्ध हुआ। उसने अनेक युद्ध किये जिसमें से अधिकांश में उसे सफलता प्राप्त हुई। उसने ‘महाराजाधिराज’ ‘परमेश्वर’, ‘परमभट्टारक’ आदि उपाधियों धारण की थी।

अर्णोराज की उपलब्धियाँ (विजयें)

(1 ) तुर्कों पर विजय: अनएन को गजनी और लाहौर के यामिनी वंशीय तुर्क शासक से संघर्ष करना पड़ा। पृथ्वीराज विजय से विदित होता है कि तुर्क आक्रमणकारी अजमेर तक पहुँच ही रहे थे कि चाहमान सैनिकों ने तुर्कों को अपने नगर के बाहर ही बुरी तरह पराजित किया। तुर्कों के रक्त से पृथ्वी अपवित्र हो गयी। इसको दूर करने के लिए अर्णोसागर का निर्माण कर, महोत्सव मनाया था।

हर्षवर्धन राज्यकाल का इतिहास के साहित्यिक साक्ष्यों का उल्लेख कीजिए।

(2) परमारों पर विजयः बिजौलिया अभिलेख से विदित होता है कि अर्णोराज ने परमार नरेश परवर्मा को पराजित किया। इस समय परमार वंश की राजनीतिक स्थिति निर्बल थी और इस निर्बलता का लाभ चाहमान एवं चालुक्य नरेश बराबर उठाते रहे।

(3) चालुक्यों से संघर्ष: अर्णोराज का चालुक्य वंश से भी संघर्ष हुआ। अर्णोराज का समकालीन चालुक्य नरेश जयसिंह सिद्धराज था अर्णोराज ने जयसिंह सिद्धराज पर भी आक्रमण किया, परन्तु इस युद्ध में अर्णोराज पराजित हुआ पराजित नरेश अयन को जयसिंह सिद्धराज की पुरी कांचन देवी से विवाह करने के लिए विवश होना पड़ा। इस प्रकार चाहमान एवं चालुक्य वंश में वैवाहिक सम्बन्ध स्थापित हो गये और अर्णोराज को अपनी भूमि नहीं गवानी पड़ी। इस प्रकार अर्णोराज की दो रानियाँ हो गयीं कांचन देवी एवं सुधया कांचन देवी चालुक्य नरेश जयसिंह की पुत्री थी और सुधवा राजपूताना के एक सामन्त राजा की पुत्री थी। कांचन देवी से एक पुत्र हुआ, जिसका नाम सोमेश्वर था और सुचवा से तीन पुत्र हुए जिनके नाम जगदेव, विग्रहराज और देवदत। परन्तु जयसिंह सिद्धराज की मृत्यु के पश्चात उसका पुत्र कुमार पाल चालुक्य वंश का उत्तराधिकारी हुआ। अर्णोराज ने उज्जैन नरेश बल्लभ के साथ सन्धि करके कुमार पाल पर आक्रमण कर दिया। इस युद्ध में अर्णोराज पुनः पराजित हुआ। इस बात के प्रमाण मिलते हैं कि अर्णोराज की शक्ति का लोहा शत्रु भी मानते थे। उसकी सबसे बड़ी उपलब्धि यह थी कि वह तुर्कों के आक्रमण को रोकने में सफल रहा था और बीस वर्षों तक तुर्की ने फिर चहमानों पर आक्रमण नहीं किया। अर्णोराज शैव मतावलम्बी था। उसने अमजेर में मंदिरों के निर्माण के लिए भूमिदान भी दिया था। उसने पुष्कर में वराह मंदिर का निर्माण किया परन्तु इस महान विजेता की मृत्यु अत्यधिक दुःखदायी हुई अणराज की पत्नी सुधयादेवी के गर्भ से उत्पन्ना ज्येष्ठ पुत्र ने अपने पिता की हत्या कर दी।

(4) अन्य विजयें: अणराज पंजाब में भद्र और सिन्ध प्रदेश पर विजय प्राप्त की थी। इसके पश्चात हरियाणा प्रदेश (हरितानक) पर विजय प्राप्त की। चाहमान नरेश ने दिल्ली (बिल्लिका) के तोमरों को भी पराजित किया था। विजीनिया अभिलेख में कुशवारण (बुलन्दशहर) पर भी विजय का उल्लेख मिलता है।

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