चन्देल नरेश हर्ष की मृत्यु के बाद उसका पुत्र यशोवर्मन सन 930ई. में चन्देल सिंहासन पर विराजमान हुआ। वह चन्द्रवंश का प्रथम प्रमुख विजेता और दिग्विजयी सम्राट सिद्ध हुआ। उसके भाग्य से परिस्थितियों उसके अनुकूल थी। यशोवर्मन ने अनेक विजये प्राप्त की और अपने साम्राज्य का विस्तार किया।
यशोवर्मन की उपलब्धियाँ
यशोवर्मन के नालन्दा अभिलेख में उसकी उपलब्धियों के विषय में जानकारी प्राप्त होती है। उसकी । उपलब्धियों का विवरण इस प्रकार है
जेण्डर भूमिका पर एक निबन्ध लिखिए।
( 1 ) कालिन्जर विजयः कालिंजर आधुनिक उ.प्र. के बाँदा जिले में स्थित है। यहाँ स्थित दुर्ग बहुत विशाल और अभेष था। खजुराहो अभिलेख से पता चलता है कि यशोवर्मन ने बार को बहुत ही आसानी से विजित कर लिया। खजुराहो राजधानी के निकट कालिंजर पर अधिकार प्राप्त करना चन्देल राज्य के लिए महत्वपूर्ण घटना थी। यशोवर्मन द्वारा कालिंजर परविजय प्राप्त करने के पूर्व उस पर किसका अधिकार था, इस विषय में मतभेद हैं।
डॉ. हेमचन्द्र रे, डॉ. अल्लेकर एवं डॉ. शिशिर कुमार मित्र के अनुसार कालिंजर पर राष्ट्रकूट अधिकार था और यदोवर्मन ने राष्ट्रकूटों से ही कालिंजर को छीना था।
श्री चिन्तामणि विनायक वैद्य, कर्नियम, एस. एन. बोस एवं जयदेव आदि इतिहासकारों का मत है, कि ययोवर्मन द्वारा कालिंजर पर अधिकार करने के पूर्व उस पर कलचुरियों का अधिकार था। परन्तु डॉ मीराशी का कथन है कि चन्देल के पूर्व कालिंजर एवं चित्रकूट दोनों पर गुर्जर प्रतिहारों का अधिकार था
2 ) चेदि राज्य पर विजयः यशोवर्मन ने कालिंजर विजय के पश्चात् चेदि पर भी विजय प्राप्त की थी। खजुराहो अभिलेख से विदित होता है कि यशोवर्मन के भय से गर्हित चेदि राज्य कांपने लगा, ऐसे चेदि राज्य को उसने बलपूर्वक पराजित किया। कोलहार्न एवं डॉ. मीराशी के मतानुसार यथोवर्मन का समकालीन पराजित चेदि नरेश युवराज प्रथम था।
(3 ) पालों पर विजयः यशोवर्मन ने पाल नरेश गोपाल- द्वितीय को पराजित किया था। सम्भवत उसने पालों से गौड़ और मिथिला के प्रदेश छीन लिये थे।
(4) मालवा की विजयः यशोवर्मन को मालवा के विरुद्ध भी सफलता प्राप्त हुई थी। उस यहाँ परमार वंशीय सीयक द्वितीय को पराजित किया था।
यशोवर्मन की अन्य विजयेंः
खजुराहो अभिलेख से विदित होता है कि यथोवर्मन गौड़ों को ला के समान काटने वाली तलवार के समान था, उसने खस सेनाओं को तौल लिया, कोशलों के कोष को लूटा, कश्मीर के वीरों का नाश किया, मिथिला के राजा को शिथिल किया, वह मालवों के लिए काल या चेदि राज्य के लिए दुःख एवं गुर्जरों के लिए ज्वार था। इतनी ही नहीं यशोवर्मन ने उमा (पर्वती) के उद्यान (कैलाश) के निकट हिमालय की चोटियों पर धीरे-धीरे किसी तरह अपना अधिकार कर लिया था।
विजयों के इस काव्यात्मक विवरण में अतिशयोक्ति अवश्य है, परन्तु इतना निश्चित है कि उसके अधिकार में हिमालय से मालवा एवं कश्मीर से बंगाल तक का विस्तृत क्षेत्र था। इस समय ‘पाल राज्य पतन की ओर अग्रसर था। यशोवर्मन का समकालीन पतनोन्मुख पाल नरेश गोपाल द्वितीय था। अतः यह सम्भव है कि यशोवर्मन ने गोपाल द्वितीय के गौड़ एवं मिथिला के प्रदेश पर अधिकार कर लिया हो। खजुराहो अभिलेख में कोशल का तात्पर्य किससे कहते है, यह स्पष्ट नहीं है। इस समय उत्तरी कोशल प्रतिहारों के आधीन था एवं दक्षिणी कोशल सोमवंशी राजाओं के क्षेत्र में था। मिथिला का गोपाल द्वितीय चन्देल नरेश यशोवर्मन का समकालीन था। यशोवर्मन ने इस पर अपना अधिकार स्थापित किया था। उसने मालवा के सीयक द्वितीय को जो राष्ट्रकूट नरेश कृष्ण तृतीय का सामन्त था, पराजित किया था।
यशोवर्मन का मूल्यांकनः
यशोवर्मन एक महान विजेता था। उसने चन्देल साम्राज्य का विस्तार किया था। खजुराहो अभिलेख से विदित होता है कि यशोवर्मन एक महान विजेता था। उसने कालिंजर विजय के पश्चात् गौड़, खश, कोशल, चेदि, कुरु, मालवा, कश्मीर एवं गुर्जरों पर विजय प्राप्त की। उनका विस्तृत साम्राज्य हिमालय से चेदि एवं मालवा राज्य तक विस्तृत था। यशोवर्मन एक महान निर्माता था। उसने खजुराहों में एक भव्य विष्णु मंदिर का भी निर्माण कराया था जो खजुराहों में लक्ष्मण मंदिर के नाम से दर्शनीय है। स्थापत्य कला की दृष्टि से यह अपने युग में भारत का सर्वाधिक विकसित और अंलकृत मंदिर था। चन्देतों की अभिवृद्धि, शक्ति एवं प्रतिष्ठा के अनुरूप ही यह स्मारक भी था।
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