अभिसमयों का संविधान में स्थान-अभिसमयों को केवल ब्रिटिश संविधान में ही प्रमुख स्थान प्राप्त नहीं है वरन् यह तो जैसा कि विलियम होल्ड्सवर्थ ने कहा है- “जहाँ भी शासनशक्ति भिन्न-भिन्न व्यक्तियों में अथवा संस्थाओं में निहित हो अर्थात् जहाँ भी मिश्रित संविधान हो वहाँ इन अभिसमयों अथवा वैज्ञानिक परम्पराओं का विश्वास प्रत्येक काल में और प्रत्येक स्थान पर होना चाहिये।” अमेरिका, भारत, कनाडा, स्विटजरलैण्ड सभी देशों में अभिसमयों का विकास हो रहा है। केवल अभिसमय के आधार पर ही अमेरिका के सर्वोच्च न्यायालय ने न्यायिक पुनरवलोकन की शक्ति प्राप्त कर ली है।

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प्रत्येक देश के संविधान में अभिसमय विकसित हुए है। परन्तु ब्रिटेन का तो सम्पूर्ण संविधान इन पर ही टिका हुआ है। ब्रिटेन के प्रधानमन्त्री एस्क्विथ ने कहा था, “हमारी वैधानिक पद्धति प्रथाओं, परम्पराओं और अभिसमयों पर निर्भर है।” कानून तो शासन व्यवस्था कवल स्थूल ढाँचें का निर्माण करते हैं। ये अभिसमय उनमें जीवन और गति का संचार करते हैं। ऑग और जिंक के अनुसार- “ये अभिसमय ब्रिटेन के कानून की सूखी अस्थियों पर माँस चढ़ाते हैं। और कानूनी धारणाओं के अनुसार संशोधित करते हैं।” ब्रिटेन का संविधान मूलतः अलिखित संविधान है अतः उसमें अभिसमयों का विकास होना अवश्यम्भावी है। डायसी ने ठीक ही कहा है कि ब्रिटेन का संविधान अभिसमयों का संविधान है।
अभिसमयों का महत्व
किसी सुन्दर और भव्य भवन के निर्माण में जो महत्व सीमेंट का होता है, वही महत्व ब्रिटिश संविधान में अभिसमयों का है। ब्रिटेन के संविधान के लिखित अंशों से संविधान की तस्वीर में बहुत से रिक्त स्थान रह जाते हैं। इन सभी रिक्त स्थानों की पूर्ति अभिसमय करते हैं। अभिसमय के बिना ब्रिटेन में संविधान एक निर्जीव शरीर के अतिरिक्त और कुछ नहीं है। अभिसमयों के महत्व पर प्रकाश डालते हुए फ्रीमैन कहते हैं- “अब हमारे पास राजनीतिक नैतिकता की एक पूरी व्यवस्था है…..। जो परिनियमों या सामान्य विधियों के किसी पृष्ठ पर नहीं पाई जायेगी, परन्तु जो व्यवहार में ग्रेट चार्टर या पिटीशन ऑफ राइट्स में शामिल किसी भी सिद्धान्त से कम पवित्र नहीं है। संक्षेप में हमारे लिखित संविधान के साथ-साथ अभिसमयों का एक अलिखित संविधान भी विकसित हो गया है।”
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ब्रिटेन में अभिसमयों का महत्व इसलिये है कि वे संसद और मन्त्रिमण्डल से जनता रूपी सम्प्रभु की इच्छा के अनुसार कार्य करवाते हैं। डायसी के शब्दों में, “हमारी वर्तमान सांविधानिक नैतिकता उस तथ्य को सिद्ध करती है, जिसे दूसरे देशों में जनता की प्रभुसत्ता कहा जाता है।
ब्रिटिश संविधान में अभिसमयों का महत्व इसलिये भी है कि इन्होंने संविधान के क्रियान्वयन को सरल बनाया। जहाँ संविधान के क्रियान्वयन में कठिनाई उत्पन्न हुई, वहीं किसी अभिसमय ने तुरन्तर आगे बढ़कर वह उलझन दूर कर दी है। बर्क ने कहा था- “इनके द्वारा संविधान वर्तमान सांविधानिक सिद्धान्त के अनुरूप कार्य करता है।” अभिसमय संविधान के विकास को स्वाभाविकता भी प्रदान करते हैं। निरंकुशवाद से प्रजातन्त्र की लम्बी यात्रा के दौरान ब्रिटिश संविधान में अभिसमयों ने निरन्तर चलने में सहायता दी, थकने पर विश्रान्ति की सुविधाएं दी।
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अभिसमयों के महत्व का कारण यह भी है कि इनके कारण ब्रिटेन का संविधान नमनीय हो गया है। विलफ्रेंड हेरीसन ने अपनी पुस्तक ‘The Government of Britain’ में लिखा है, संविधान की इसी नमनीयता के कारण ही यह शासन व्यवस्था कई तूफानों का सामना कर पाई है और इसलिये इस नमीयता को बनाये रखना उपयुक्त है।
कानून और अभिसमयों में अंतर
जनसाधारण के लिये कानून और अभिसमयों में कोई अन्तर नहीं है। क्योंकि दोनों के बीच और दोनों का पालन किया जाता है। दोनों के बीच जो अन्तर है वह आधारभूत महत्ता का नहीं है। अनेक ब्रिटिश संस्थायें, जिनका अभिसमय द्वारा विकास हुआ, बाद में कानून द्वारा स्वीकार कर ली गयी। जैनिंग्स ने लिखा है- “क्या कानून है और क्या अभिसमय यह मुख्य रूप से पारिभाषित प्रश्न हैं। इनके उत्तर केवल उन्हीं को पता है जिसका कार्य उन्हें ज्ञात करना है। जनसाधारण के लिये यह विशेष महत्व नहीं रखता है कि यह नियम न्यायिक अधिकारियों द्वारा मान्यता प्राप्त है अथवा नहीं। तो भी तकनीकी आधार पर अभिसमय और कानून अलग-अलग है। दोनों में कतिपय भिन्नताएँ हैं-
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1 ) स्रोत में अन्तर-
कानून और अभिसमय दोनों के स्रोत भिन्न-भिन्न हैं। कानून 5 का स्रोत कोई वैधानिक सत्ता होती है। सामान्यतः इसे व्यवस्थापिका द्वारा निर्मित किया जाता है। ब्रिटिश संसद कानून का नियमानुसार निर्माण करती है, जबकि अभिसमयों का स्रोत रीति-रिवाज और परम्पराएँ होती है। इनका जन्म व्यवहार और प्रयोग से होता है। ये परिवर्तनशील होते हैं। ये वृक्ष की भाँति स्वतः विकसित होते हैं।
( 2 ) स्वरूप में अन्तर-
कानून और अभिसमय दोनों की भाषा, भाव और स्पष्टता में अन्तर होता है। कानून की भाषा स्पष्ट और सुगठित होती है, क्योंकि ये सप्रयास बनाये जाते हैं, जबकि अभिसमयों की भाषा और स्वरूप कभी-कभी स्पष्ट नहीं होता क्योंकि अभिसमय अलिखित होते हैं।
( 3 ) न्यायिक मान्यता का अन्तर-
कानून और अभिसमय में अन्तर यह है कि कानून को न्यायालय की शक्ति प्राप्त रहती है। उसका उल्लंघन करने वाले को न्यायालय द्वारा दण्ड दिया जाता है जबकि अभिसमयों को न्यायिक शक्ति प्राप्त नहीं रहती। उनका पालन न करने पर न्यायालय कोई दण्ड नहीं देते।
दोस्त्तों हम उम्मीद करते हैं की आप सभी को आज का हमारा यह आर्टिकल बहुत ही ज्यादा पसंद आया होगा । अगर आप सभी प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए तयारी कर रहे हैं तो आप सभी इसे अवश्य पढ़ें और आप सभी इसे अभिसमयों का संविधान में स्थान तथा महत्व बताइये । अथवा कानूनों और अभिसमयों में क्या अन्तर है इस आर्टिकल को आप सभी अपने दोस्तों के साथ अवश्य शेयर करें ।
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