काँग्रेस में उग्रवाद के उत्थान के कारणों की विवेचना।Reasons for rise of militancy in Congress

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Reasons for rise of militancy in Congress-नमस्कार दोस्तों, ज्जैसा की आप सभी जानते हैं की हम आप सभी के लिए प्रतियोगी परीक्षाओं से सम्बंधित विभिन्न जानकारियां हिंदी में इस वेबसाइट के माध्यम से शेयर करते रहते हैं आज के इस आर्टिकल में आप सभी छात्रों के लिए काँग्रेस में उग्रवाद के उत्थान के कारणों के बारे में जानेंगे, काँग्रेस में उग्रवाद के उत्थान के कारण निम्नलिखित थे-

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(1) 1892 के सुधारों की अपर्याप्तता

उदारवादियों की केवल एक ही उपलब्धि थी – 1892 ई. का इण्डियन काउन्सिल एक्ट। उन्होंने इस एक्ट से बहुत आशाएँ की थीं लेकिन इसके प्रावधानों से उन्हें भी निराशा हुई। इसमें भारतीयों को कोई अधिकार नहीं दिया गया था और न निर्वाचन प्रणाली को लागू किया गया था, जिसकी वे माँग कर रहे थे। इसके बाद भी उदारवादी सरकार से प्रार्थना करते रहे लेकिन उनकी प्रार्थनाओं तथा प्रस्तावों का सरकार पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा। इसके विपरीत, सरकार की दमन नीति बढ़ती गई। फलस्वरूप काँग्रेस के अनेक नेताओं को उदारवादियों की नीति में विश्वास नहीं रहा और वे इस नीति को व्यर्थ समझने लगे। इस भावना को व्यक्त करते हुए लाला लाजपतराय ने कहा था, “भारतीयों को अब भिखारी बने रहने में सन्तोष नहीं करना चाहिये और उन्हें अंग्रेजों की कृपा प्राप्त करने के लिए गिड़गिड़ाना नहीं चाहिये।” बाल गंगाधर तिलक ने कहा था, “काँग्रेस की नरमी और राजभक्ति स्वतन्त्रता प्राप्त करने के योग्य नहीं है। प्रस्ताव पास करने और अंग्रेजों के सामने हाथ पासरने से राजनीतिक अधिकार प्राप्त नहीं होंगे, बल्कि उनके लिये संघर्ष करना होगा।” तिलक ने कहा था कि राजनीतिक अधिकारों को संघर्ष के द्वारा ही प्राप्त किया जा सकता था।

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(2) अकाल और प्लेग

काँग्रेस में उग्रवाद के उग्रवाद के उत्थान तथा विकास में अकाल तथा महामारी की विशेष भूमिका थी। गुरुमुख निहाल सिंह का कथन उचित है, “वर्तमान शताब्दी के प्रथम दस वर्षों में प्रकृति के प्रकोपों ने भी उग्रवादी दल को पैदा करने में बहुत सहायता की। “

  • 1896-97 में दक्षिण भारत में भीषण अकाल पड़ा, जिसका प्रभाव 7 करोड़ व्यक्तियों तथा 70,000 वर्ग मील पर था। सरकार की सहायता कार्य अपर्याप्त था और जो कुछ हुआ वह अत्यन्त अव्यवस्थित तथा धीमी गति से हुआ।
  • 1899-1900 में भारत के कई भागों में अकाल पड़ा, लेकिन सरकार प्रायः उदासीन में और निष्क्रिय रही।
  • 1876 से 1900 तक के पच्चीस वर्षों में 18 अकाल पड़े। सरकार ने इन भयंकर मानवीय विपत्तियों की भी उपेक्षा की और 1878 तथा 1897 में शानदार दरबारों पर पानी की तरह रुपया बहाया गया।
  • अकाल की भयंकर आपदा के साथ-साथ 1898 में महाराष्ट्र के पश्चिमी क्षेत्र में, विशेष रूप से पूना तथा बम्बई में प्लेग की महामारी फैल गयी। इस रोग के निवारण के लिए सरकार ने उपेक्षा और लापरवाही की नीति अपनायी।

(3) श्रीमति एनी बेसेन्ट

श्रीमति एनी बेसेन्ट का मत था कि तिलक के कारावास ने ही उग्रवाद को जन्म दिया था। सुरेन्द्रनाथ बनर्जी ने लिखा था, “हम पूना में दण्ड देने वाली पुलिस को बुरा समझते थे। अब तिलक और पूना के दूसरे सम्पादकों को कैद में डालना और भी बुरा समझते हैं। तिलक की कैद पर सारा राष्ट्र रो रहा है।”

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(4) सरकार की दमनात्मक तथा प्रतिक्रियावादी नीतियाँ

एक ओर काँग्रेस की सुधार सम्बन्धी माँगों की उपेक्षा हो रही थी, तो दूसरी ओर सरकार दमनात्मक नीति पर चल रही थी जिससे असन्तोष बढ़ता जा रहा था। इंग्लैण्ड में इन वर्षों में अनुदार दल का शासन था, जिसे भारत के सुधारवादी आन्दोलन से कोई सहानुभूति नहीं थी। लार्ड लेन्सडाउन के काल में मुद्रा सम्बन्धी कार्य किये गये, जिससे भारत को हानि हुई। लार्ड एल्गिन के समय में भयंकर दुर्भिक्ष पड़ा, जो अंग्रेजों की शोषण नीति का परिणाम था। फिर भी एल्गिन ने अहंकारपूर्वक भारतीयों का अपमान करते हुए कहा था, “हिन्दुस्तान तलवार के बल पर जीता गया था और तलवार के बल पर ही उसकी रक्षा की जायेगी।” लार्ड कर्जन के काल में कई प्रतिक्रियावादी कानून पारित किये गये, जिनका भारतीयों ने विरोध किया। इन कानूनों में कलकत्ता कारपोरेशन एक्ट, विश्वविद्यालय एक्ट, आफीशियल सिक्रेट्स एक्ट विशेष रूप से उल्लेखनीय है। उसने भारतीयों का तिरस्कार करते हुए कहा था, “सत्य का उच्च आदर्श अधिकतर पश्चिमी विचार है, इस आदर्श ने पहले पश्चिम की नैतिक परम्परा में स्थान प्राप्त किया, बाद में यह आदर्श पूर्व में आया, जहाँ पहले चालाकी और कुटिलता आदर पाती रही थी।”

(5) प्रजातीय कटुता और अंग्रेजों का अहंकार

उग्रवाद के उत्थान का एक अन्य कारण अंग्रेजों का भारतीयों के प्रति अहंकारपूर्ण तथा अविश्वास का दृष्टिकोण था। भारतीयों का अपमान करना साधारण बात हो गई थी। भीषण अपराधों पर अंग्रेजों के विरुद्ध कोई कार्यवाही नहीं होती थी। अंग्रेजी समाचार पत्र ऐसे अपराधों को प्रोत्साहन देते थे। एक समाचार-पत्र तो भारतीय शिक्षित वर्ग के लिये अर्द्धविक्षिप्त बी.ए.’, ‘वर्णशंकर बी.ए.’, दास जाति, कलंकी जाति आदि अपमानजनक शब्दों का बहुधा से प्रयोग करता था। लार्ड कर्जन ने समस्त भारतीय जाति को अपमानित करने के लिये उसे कुटिल, धूर्त, चालाक और मिथ्यावादी कहा था। उसने तो यहाँ तक कहा था कि “भारतीय राष्ट्र नाम की कोई चीज नहीं है।”

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(6) धार्मिक पुनरुत्थान

19वीं शताब्दी के अन्तिम वर्षों में धार्मिक पुनरुत्थान के कारण एक ऐसे वर्ग का उत्थान हुआ जो भारत संस्कृति को यूरोपीय संस्कृति से श्रेष्ठ समझता था और विदेशी शासन को घृणा की दृष्टि से देखता था। उग्रवाद को इस धार्मिक प्रेरणा से शक्ति प्राप्त हुई। इस धार्मिक पुनरुत्थान की प्रेरणा स्वामी विवेकानन्द, स्वामी दयानन्द, अरविन्द घोष से प्राप्त हुई। वे भारतीय समाज पर बढ़ते हुए पश्चिमी प्रभाव के विरोधी थे। अरविन्द घोष ने कहा था, “स्वाधीनता हमारा लक्ष्य है और हिन्दुत्व ही हमारी आकांक्षा पूरी कर सकता है।” विवेकानन्द ने शिकागो सम्मेलन में हिन्दू संस्कृति और गौरव को स्थापित किया और यह तर्क प्रस्तुत किया कि विश्व की सभ्यता का मूल स्रोत भारत है। एनी बेसेन्ट ने भी यह मत व्यक्त किया था कि, “सारी हिन्दू प्रणाली पश्चिमी सभ्यता से बढ़ कर है।” तिलक ने अपने ग्रन्थ “गीता रहस्य” द्वारा कर्मयोग के महत्व पर प्रकाश डाला। उग्रवाद की प्रेरणा का स्त्रोत यह धार्मिक पुनरुत्थान भी था। उग्रवादी नेताओं की बौद्धिक तथा भावनात्मक प्रेरणा भारतीय वीरों पर आधारित थी। रवीन्द्रनाथ टैगोर की देशभक्तिपूर्ण रचनाएँ, बंकिम का आनन्द मठ, तिलक का शिवाजी उत्सव और गणेश उत्सव ने उग्र राष्ट्रवाद के प्रसार में योग दिया।

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(7) बंगाल विभाजन

लार्ड कर्जन के दमनात्मक कार्यों में अन्तिम कड़ी बंगाल का विभाजन था, जिसने उग्रवाद को शक्ति और प्रेरणा प्रदान की। इससे उदारवादियों की स्थिति दुर्बल हुई और उग्रवादियों के तर्कों को बल प्राप्त हुआ। कर्जन का उद्देश्य विभाजन द्वारा भारतीय राष्ट्रवाद को दुर्बल करना था लेकिन इसका उल्टा परिणाम हुआ। इस विभाजन से यह स्पष्ट हो गया कि अंग्रेजों की नीतियों का उद्देश्य अपना साम्राज्यवादी नियन्त्रण कठोर करना था और भारतीयों के हितों भावनाओं की उन्हें कोई चिन्ता नहीं थी। सुरेन्द्रनाथ बनर्जी ने लिखा है, “बंगाल विभाजन हमारे ऊपर बम की तरह गिरा। हमने समझा कि हमारा घोर अपमान किया गया है।” डॉ. रमेशचन्द्र मजूमदार लिखते हैं, “निस्सन्देह यह बंगाल में उत्पन्न होने वाली राष्ट्रीयता की भावना को नष्ट करने की एक वृहद् योजना थी।” जनता ने विभाजन की दृढ़ता से विरोध किया। इससे बंगाल ही नहीं सारा देश धधक उठा। 16 अक्टूबर, 1905 में विभाजन के दिवस को ‘काला दिवस’ के रूप में मनाया गया, विरोधी सभाएँ की गई, विदेशी वस्त्र जलाये गये। इससे उग्रवादी राष्ट्रवाद को बढ़ावा मिला।

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(8) उदारवादियों की कार्यपद्धति के विरुद्ध असन्तोष

काँग्रेस में उग्रवाद के उत्थान का एक महत्वपूर्ण कारण उदारवादियों की पद्धति और उसके प्रति असन्तोष था। उदारवादियों का उद्देश्य पूर्ण स्वतन्त्रता नहीं था। वे चाहते थे कि अंग्रेजों की कृपा द्वारा भारत के भाग्य का निर्णय हो। वे ब्रिटेन के साथ तथा उसके साम्राज्य से जुड़े रहना चाहते थे। उन्होंने इस तथ्य को कभी नहीं समझा कि ब्रिटिश साम्राज्यवाद और भारतीय राष्ट्रवाद में पूर्ण विरोध था। उनको यह भ्रम था कि भारत और भारतीयों के हित एक थे। अतः अंग्रेज भारत के कल्याण के कार्य करेंगे। उग्रवाद के उत्थान का कारण उदारवादियों के प्रति असन्तोष था। तिलक ने उनके सम्मेलनों को ‘चापलूसों का सम्मेलन’ तथा छुट्टियों को मनोरंजन घोषित किया।

(9) योग्य नेताओं का आविर्भाव

उकाँग्रेस में उग्रवाद के उत्थान में अनेक योग्य नेताओं का भी योगदान था, जिन्होंने इसे नवीन दिशा दी। इनमें बालगंगाधर तिलक, लाला लाजपतराय, विपिनचन्द्र पाल और अरविन्द घोष विशेष रूप से उल्लेखनीय है। वे उत्कृष्ट देशभक्त थे और संघर्ष करने को तत्पर थे। वे ब्रिटिश नौकरशाही से घृणा करते थे और अपने अधिकारों को प्राप्त करने के लिए कटिबद्ध थे। उनका मूलमन्त्र, स्वराज्य, स्वदेशी और बहिष्कार थे। तिलक ने ‘केसरी’ पत्र के द्वारा देश प्रेम, वीरता तथा साहस का प्रचार किया और घोषणा की “स्वराज्य हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है और हम इसे लेकर रहेंगे।”

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