कल्चुरी शासक गांगेयदेव की उपलब्धियाँ
कल्चुरी शासक गांगेयदेव (सन् 1019 ई-1041 ई.)- चन्देल साम्राज्य के दक्षिण में कल्चुरी वंश का राज्य स्थित था। उनकी राजधानी त्रिपुरी थी। त्रिपुरी सम्भवतः आधुनिक जबलपुर के पास थी। गांगेयदेव इस वंश का एक शक्तिशाली शासक था। वह कोमल द्वितीय का पुत्र गांगेयदेव एक महत्वाकांक्षी शासक था। उसने सन् 1019 ई. में सिंहासन प्राप्त किया। गंगिय देव के राज्यारोहण के समय कलचुरि राज्य की स्थिति अच्छी नहीं थी, लेकिन गांगेयदेव ने अपनी योग्यता व शक्ति से सम्पर्ण राज्य को सबल बनाया। उसके प्रबल प्रतिद्वन्दी परमार भोज तथा चन्देल विद्याधर थे। विद्याधर की जब मृत्यु हो गयी तो उसने अपनी स्वतन्त्रता घोषित कर दिया सिंहासन प्राप्ति के पश्चात् उसने साम्राज्य विस्तार की ओर ध्यान दिया। उसने अपने समकालीन अनेक राज्यों को जीतकर एक विशाल साम्राज्य का निर्माण किया। एक चन्देल अभिलेख में उसे संसार का विजेता कहा गया है। अपनी इन उपलब्धियों के कारण उसने विक्रमादित्य का विरूद्ध धारण किया। गांगेयदेव की उपलब्धियों का संक्षिप्त वर्णन इस प्रकार है
परमार नरेश भोज से संघर्ष- गांगेयदेव ने अपने साम्राज्य विस्तार के अन्तर्गत परमारों के महान शासक भोज से संघर्ष किया। धारा प्रशस्ति से भी दोनों में हुए युद्ध का विवरण प्राप्त होता है। इस संघर्ष में भोज की विजय हुई और गांगेयदेव को पराजय का मुंह देखना पड़ा।
चन्देल नरेश विद्याधर से युद्ध
गांगेयदेव का समकालीन चन्देल राजा विद्याधर था जो 1017 ई. में सिंहासनारूढ़ हुआ था। विद्याधर ने महमूद गजनवी से भी लोहा लिया था। एक अभिलेख से यह ज्ञात होता है कि भोजदेव और कलचुरि चन्द्र कान्यकुब्ज नरेश विनाशक (विद्याधर) की शिष्यवत् पूजा करता था। डॉ. रे के मतानुसार वह कलबुरि राजा जो विद्याधर की पूजा करता था, वह कोमल द्वितीय था। परन्तु डॉ. गांगुली और वैद्य महोदय का मत है कि यह कलचुरि राजा गांगेय देव था। ऐसा अनुमान किया जाता है कि क्ल द्वितीय और गांगेयदेव दोनों ही चन्देल राजा विद्याधर के हाथों पराजित हुए थे।
चन्देल नरेश विजयपाल से युद्ध
कुछ विद्वानों का मत है कि कलचुरि नरेश गांगेय देव और चन्देल के नरेश विजयपाल से भी युद्ध हुआ। चन्देल नरेश विजयपाल 1030 ई. में सिंहासनरूढ़ हुआ। महोबा अभिलेख से यह ज्ञात होता है कि गांगेयदेव ने बुन्देलखण्ड पर भी अधिकार करना चाहा या परन्तु वह तत्कालीन चन्देल राजा विजयपाल द्वारा पराजित हुआ था।
बनारस और प्रयाग पर अधिकार-
गांगेय देव का वाराणसी (बनारस) और प्रयाग पर भी अधिकार था। इन क्षेत्रों पर उसने प्रतिहारों के पतन के पश्चात् अधिकार किया था। अल-बेहकी के ‘तारीख-उस-सुबुक्त गीन से प्रमाणित है कि बनारस पंजाब के शासक अहमद नियत्तिगिन के 1033 ई. के आक्रमण के समय गंग (गांगेयदेव) के अधिकार में था। प्रयाग में गांगेयदेव ने अपना निवास स्थान भी बनवाया था।
उत्कल और कुन्तल पर अधिकार
एक नेपाली संस्कृत हस्तलिखित (रामायण) प्रति से पता चलता है कि गांगेयदेव ने विक्रम संवत 1076 (सन् 1017 ई.) के कुछ पूर्व तीर भुक्ति (तिरहुत) पर अधिकार कर लिया था। एक अन्य अभिलेख से यह भी पता चलता है कि उसने उत्कल (उड़ीसा और कुन्तल कन्नड़ प्रदेश) के राजाओं को भी पराजित किया था। एक अन्य अभिलेख में उसे पंजाब का स्वामी बताया गया है।
सामुदायिक भावना को स्पष्ट कीजिए।
इस प्रकार उसने उपरोक्त प्रदेशों पर अधिकार करने के पश्चात् एक विस्तृत साम्राज्य का निर्माण किया। उसने महाराजाधिराज, परमेश्वर महामण्डलेश्वर जैसी उपाधि ग्रहण की दा अभिलेख से पता चलता है कि उसने विक्रमादित्य की भी उपाधि ग्रहण की थी। गांगेयदेव शैवमतावलम्बी था। उसने अनेक शैव मन्दिरों एवं मड़ों की स्थापना की थी। सम्पूर्ण कलचुरि वंश के सिक्के प्रवर्तित करने वाला गांगेय देव पहला और अन्तिम राजा था। सिक्कों पर उसके साथ ही साथ लक्ष्मी की आकृति भी उत्कीर्ण थी। सन् 1041 ई. में गांगेयदेव की मृत्यु हो गयी।
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