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उग्रवादी अन्दोलन के विषय में आप क्या जानते हैं? Complete information about militant movement

19वीं शताब्दी के अन्तिम वर्षों में काँग्रेस की उदारवादी नीतियों के विरुद्ध असन्तोष बढ़ने लगा था। इस समय देश में तथा अन्तर्राष्ट्रीय जगत में ऐसी घटनाएँ हुई, जिन्होंने भारतीय नवयुवकों के दृष्टिकोण में आमूल परिवर्तन कर दिया। अब उन्हें उदारवादियों की वैधानिक उपयोगिता के बारे में सन्देह होने लगा था। इस प्रकार काँग्रेस में अब एक ऐसे नेता वर्ग का उत्थान हुआ, जो विनम्रशील पद्धति का परित्याग करके शक्तिशाली उपायों का प्रयोग करना चाहते थे। वे अपने अधिकारों को बलपूर्वक प्राप्त करना चाहते थे। वे स्वावलम्बन के द्वारा स्वराज्य प्राप्त करना चाहते थे। इस आन्दोलन का आधार गतिशीलता तथा सक्रियवाद था। इसके नेताओं को उग्रवादी कहा गया। इस नवविकसित वर्ग के तीन प्रमुख नेता थे- बाल गंगाधर तिलक, लाला लाजपतराय तथा विपिनचन्द्र पाल। उदारवादियों को नरम दल कहा जाता था। इस नवीन वर्ग को उनकी तुलना में गरम दल कहा जाने लगा। इस दल का उत्थान 1895 ई. से ही माना जाता है, जब उग्रवादियों ने पूना सार्वजनिक सभा को उदारवादियों से छीन लिया था, जिसके कारण उदारवादी नेता रानाडे और गोखले ने ‘दक्षिण सभा’ की स्थापना की थी।

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क्रान्तिकारी उग्रवाद

उग्रवादियों में भी एक अतिवादी नवयुवकों का वर्ग था जो क्रान्तिकारी उपायों में विश्वास करता था। उनकी क्रान्तिकारी गतिविधियों को सरकार ने दमनात्मक कार्यों से कुचलने का प्रयास किया और भय तथा आतंक के वातावरण को निर्मित किया। इस दमन से उग्रवादी तथा क्रान्तिकारी गतिविधियों में वृद्धि हुई। इन साहसी और बलिदानी क्रान्तिकारियों का भारतीय स्वतन्त्रता के आन्दोलन में महत्वपूर्ण स्थान है।

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