अल्पविकसित अर्थव्यवस्था में आर्थिक विकास की समस्यायें (Problems of Economic Growth in UnderDeveloped Economy) अल्पविकसित देशों में आर्थिक प्रगति से सम्बन्धित प्रमुख समस्याओं को छः भागों में बाँटा जा सकता है-
- आर्थिक
- सामाजिक
- राजनीतिक प्रशासनिक
- अन्तर्राष्ट्रीय तथा
- अन्य
12वीं पंचवर्षीय योजना के उद्देश्य को स्पष्ट कीजिए।
(a) आर्थिक समस्यायें – अल्पविकसित देशों में आर्थिक उन्नति से सम्बन्धित प्रमुख आर्थिक समस्यायें निम्न होती हैं-
1.निर्धनता के दुश्चक्र की समस्या – अल्पविकसित देशों में विद्यमान निर्धनता (निम्न वास्तविक आय) पूँजी की माँग एवं पूर्ति के दोनों पक्षों को प्रभावित करती है। निम्न वास्तविक आय के कारण व्यक्तियों की बचत क्षमता बहुत कम होती है। परिणामतः निवेश हेतु पूँजी की पूर्ति कम रहती है। निवेश की नीची दर के कारण उत्पादन (वास्तविक आय) का स्तर नीचा बना रहता है। दूसरी ओर, निर्धनता (कम वास्तविक आय) के कारण, बाजार का आकार छोटा रहता है। परिणामतः उद्यमियों में निवेश-प्रेरणा का अभाव पाया जाता है। निवेश की मात्रा कम रहने से उत्पादकता एवं वास्तविक आय का स्तर नीचा बना रहता है। निर्धनता का यह दुश्चक्र आर्थिक प्रगतित से सम्बन्धित प्रमुख समस्या है। अल्पविकसित देशों. में निर्धनता अथवा गरीबी का कुचक्र इस प्रकार कार्यरत रहता है, जिस प्रकार रात्रि के बाद दिन तथा दिन के बाद रात्रि होती है। अन्य शब्दों में ये देश निर्धनता के चक्र में फँसे रहने के कारण तीव्र गति से विकास नहीं कर पाते।
2.आधारभूत संरचना के निर्माण की समस्या – कृषि और उद्योगों के विकास हेतु आधारभूत संरचना का निर्माण आवश्यक होता है। परन्तु इस कार्य हेतु विशाल वित्तीय कोषों की आवश्यकता होती है, जिन्हें जुटाना निजी पूँजीपतियों की सामर्थ्य से बाहर होता है। ऐसे निवेश से सम्भावी लाभ अनिश्चित प्रकृति के होते हैं तथा बहुत लम्बे समय बाद मिल पाते हैं। अतः निजी उद्यमी इनमें रूचि भी नहीं दिखाते।
3.पूँजी निर्माण की समस्यां – अल्पविकसित देशों में पूँजी-निर्माण की प्रक्रिया से सम्बन्धित तीनों अवस्थायें (वास्तविक बचत, उन्हें गतिशील बनाने वाली वित्तीय संस्थायें तथा उनके निवेश हेतु लाभप्रद अवसर) पिछड़ी हुई होती हैं। फलतः पूँजी निर्माण का स्तर नीचा बना रहता है, जो निम्न उत्पादकता के लिये उत्तरदायी होता है।
4.बाजार सम्बन्धी अपूर्णताओं के कारण साधनों का दुरूपयोग – अल्पविकसित देशों में विद्यमान बाजार सम्बन्धी अपूर्णताओं (बेलोचदार आर्थिक ढाँचा उत्पत्ति के साधनों की अगतिशीलता, विशिष्टीकरण का अभाव, कीमत-अस्थिरता, एकाधिकार की उपस्थिति आदि) के कारण उपलब्ध साधन अप्रयुक्त या अल्प-प्रयुक्त पड़े रहते हैं। परन्तु इन देशों में विकास की सम्भावनायें मौजूद रहती हैं। यदि संसाधनों का उचित उपयोग कर लिया जाये तो वास्तविक उत्पादन का स्तर काफी ऊँचा उठ सकता है।
5.कृषि और भूमि सुधार की समस्या – अल्पविकसित देशों में कृषि एवं भूमि से सम्बन्धित अनेक समस्यायें विद्यमान होती हैं, जैसे कृषि भूमि पर जनसंख्या का भारी दबाव, साहूकारों और जमींदारों द्वारा काश्तकारों का शोषण, ऊँचा लगान, सिंचाई के साधनों का अभाव, कृषि जोतों का अनार्थिक आकार, निम्न उत्पादकता, विपणन सम्बन्धी कठिनाइयाँ आदि।
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6.घरेलू बाजार की सीमितता – अल्पविकसित देशों में प्रति व्यक्ति आय एवं उपभोग का स्तर नीचा होने से वस्तुओं के बाजार का क्षेत्र सीमित रहता है। फलतः पूँजी निवेश हेतु कोई आकर्षण नहीं रहता; प्लान्ट का आकार छोटा रखना पड़ता है तथा बाजार में निकृष्ट वस्तुओं की माँग अधिक रहती है।
(b) सामाजिक समस्यायें – इन देशों में आर्थिक प्रगति से सम्बन्धित प्रमुख सामाजिक समस्याएं निम्न होती हैं-
1.जनसंख्या सम्बन्धी समस्यायें – अल्पविकसित देशों में जनसंख्या वृद्धि की दर बहुत ऊँची है। अनेक देशों में ‘जनसंख्या विस्फोट’ की स्थिति उत्पन्न हो गई है, जिसने आर्थिक उन्नति में अन्य सभी घटकों का योगदान निष्फल बना दिया है। तेजी से बढ़ती हुई जनसंख्या ने अल्प-रोजगार एवं बेरोजगारी की गम्भीर समस्यायें उत्पन्न की हैं। जनसंख्या की गुणात्मक हीनता (दुर्बल स्वास्थ्य, कम जीवन-अवधि और निरक्षरता) के कारण उत्पादकता का स्तर नीचा बना रहता है। जनसंख्या के आश्रितों को ऊँचा अनुपात व्यक्तियों की बचत क्षमता पर अंकुश लगाता है।
2.उद्यमशीलता का अभाव – अल्पविकसित देशों का वातावरण परम्परागत उत्पादन विधियों एवं व्यवस्था का समर्थक तथा प्रत्येक किस्म की नवीनता का विरोधी होता है। परिणामतः उद्यमशीलता एवं प्रबन्ध कौशल के विकास में बाधा पड़ती है। थोड़ी-बहुत संख्या में जो उद्यमी होते भी हैं उनका कार्य अत्यन्त जटिल होता है। वे उद्योग की बजाय व्यापार में संलग्न रहते हैं। इन देशों में उद्यमियों की कमी के कारण अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रों में पर्याप्त निवेश नहीं हो पाता। फलस्वरूप विकास की गति धीमी बनी रहती है।
3.रूढ़िवादी संस्थागत ढाँचा – अल्पविकसित देशों के निवासियों को धर्म, जाति परिवार तथा परम्पराओं से इतना अधिक लगाव होता है कि वे सामाजिक-आर्थिक वातावरण में किसी तरह का परिवर्तन पसन्द नहीं करते। जाति व्यवस्था और संयुक्त परिवार प्रणाली व्यावसायिक गतिशीलता एवं व्यक्तिगत उन्नति के मार्ग में बाधक बनती है। जनसाधारण में विकास के प्रति उचित दृष्टिकोण (भौतिकवादी दर्शन) का अभाव पाया जाता है। शिक्षा और शारीरिक श्रम के प्रति सामाजिक दृष्टिकोण प्रगति का विरोधी होता है।
4.बेरोजगारी एवं अल्प-रोजगार – अल्पविकसित अर्थव्यवस्था के कृषि क्षेत्र में अदृश्य बेरोजगारी की समस्या पायी जाती है। कृषि क्षेत्र में संलग्न फालतू श्रमिकों की उत्पादकता शूल्य या ऋणात्मक होती है। तेजी से बढ़ती हुई जनसंख्या के कारण सामान्य बेरोजगारी की समस्या बड़े पैमान पर पाइ जाती है, जो पूँजी-गहन आधुनिक तकनीक के प्रयोग में बाधक बनती हैं। यदि पूँजी गहन तकनीक का प्रयोग इन देशों में किया जाता है, तो इससे बेरोजगारी की स्थिति और भयानक होने की सम्भावना हो सकती है।
5.श्रम सम्बन्धी समस्यायें – श्रमिकों की प्रवासी प्रवृत्ति के कारण औद्योगिक केन्द्रों में स्थायी श्रमशक्ति का अभाव बना रहता है। दुर्बल संगमन के कारण श्रमिकों का पूँजीपतियों द्वारा शोषण होता है। सामाजिक एवं पारिवारिक बन्धनों के कारण श्रमिकों में व्यावसायिक एवं भौगोलिक गतिशीलता का अभाव बना रहता है। निर्धनता, अल्प-रोजगार तथा मजदूरी के निम्न स्तर के कारण श्रमिकों को स्वास्थ्य दुर्बल तथा कार्यक्षमता हीन होती हैं निरक्षरता के कारण उनमें सोचने-विचारने की शक्ति तथा उत्तरदायित्व की भावना का अभाव रहता है। इन देशों में बाल श्रमिकों की संख्या काफी अधिक होती है परन्तु इनके कार्य करने की दशायें बहुत ही दयनीय पाई जाती है। जिन बच्चों को शिक्षण संस्थाओं में होना चाहिये और अपने को अध्ययन में संलग्न रखना चाहिये, वे अल्प मजदूरी पर कारखानों आदि में कार्यरत दिखाई पड़ते हैं। यह स्थिति अधिकांश पिछड़े देशों में दृष्टिगोचर होती है।
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(c) राजनीतिक समस्यायें – इन देशों में आर्थिक प्रगति से सम्बन्धित राजनीतिक समस्यायें निम्न होती हैं-
1. राजनीतिक स्थिरता का अभाव- निर्धनता और निरक्षरता के कारण अल्पविकसित देशों के निवासी राजनीतिक अधिकारों के प्रति सजग नहीं होते। उनका राजनीतिक दलों में दीर्घकालीन विश्वास नहीं होता। फलतः सत्ता परिवर्तन की सम्भावनायें बनी रहती हैं। राजनीतिक अस्थिरता का निजी क्षेत्र के निवेश-निर्णयों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। अस्थिर सरकारें विकास हेतु दीर्घकालीन कार्यक्रम लागू करने की स्थिति में नहीं होती।
2.विदेशी आक्रमण का भय – अल्पविकसित देश प्रतिरक्षा की दृष्टि से कमजोर होते हैं। साधनों की न्यूवता के कारण वे आधुनिक शस्त्रों से सुसज्जित सेना नहीं रख सकर्ते। अतः उन्हें विदेशी आक्रमण का भय बना रहता है।
3. विकास नियोजन के प्रति जागरूकता का अभाव – अल्पविकसित देशों में विकास-नियोजन के प्रति जनता और सरकार जागरूक नहीं होती। निरक्षर और रूढ़िवादी जनता विकास कार्यक्रमों को सफल बनाने में सहयोग नहीं देती। सरकार द्वारा अधिकांश वित्तीय साधन दलगत हितों की पूर्ति में लगा दिये जाते हैं। इस प्रकार देश के स्वल्प साधनों का दुरुपयोग इन देशों में एक सामान्य बात होती है।
(d) प्रशासनिक समस्यायें – अल्पविकसित देशों में आर्थिक प्रगति से सम्बन्धित निम्न प्रशासनिक समस्यायें पाई जाती हैं-
1.प्राथमिकता निर्धारण की समस्या – अल्पविकसित अर्थव्यवस्था के प्रायः सभी क्षेत्र पिछड़ी हुई अवस्था में होते हैं। पूँजी तथा अन्य साधनों की सीमित उपलब्धता के कारण अर्थव्यवस्था के समस्त क्षेत्रों का साथ-साथ विकास सम्भव नहीं होता। अतः विक्रास हेतु प्राथमिकता निर्धारण की समस्या उत्पन्न होती है।
2.कुशल प्रशासनिक मशीनरी का अभाव – अल्पविकसित देशों के प्रशासन तन्त्र में भ्रष्टाचार, अकुशलता, भाई-भतीजावाद, लालफीताशाही आदि बुराइयाँ व्याप्त हैं, जिनका विकास प्रक्रिया पर घातक प्रभाव पड़ा है। इन देशों में विकास की योजनायें या तो अधूरी पड़ी रहती हैं या उन्हें देर से लागू किया जाता है और फलस्वरूप विकास का लाभ समय पर नहीं मिलता।
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(d) अन्तर्राष्ट्रीय समस्यायें- अल्पविकसित देशों की आर्थिक प्रगति में निम्न अन्तर्राष्ट्रीय समस्यायें और परिस्थितियाँ बाधक सिद्ध होती हैं-
प्रदर्शन प्रभाव – अल्पविकसित देश के निवासियों पर आधुनिक विश्व के आकर्षक रहन सहन का व्यापक प्रभाव पड़ता है। यह प्रभाव चलचित्र, रेडियों, दूरदर्शन, शिक्षा के प्रसार तथा यात्रा की आधुनिक सुविधाओं के माध्यम से पड़ता हैं। इसके कारण जनसाधारण की उपभोग-प्रवृत्ति सामान्य रूप से बढ़ जाती है, जिसका पूँजी निर्माण के स्तर पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।
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