अभिसमय की मान्यता के कारण को स्पष्ट कीजिये।

अभिसमयों की मान्यता का कारण- यह निर्विवाद सत्य है कि अभिसमय, कानूननहीं है। वे कानून के समान पवित्र और स्पष्ट भी नहीं हैं। फिर भी उनका पालन क्यों होता है ? प्रश्न यह है कि यदि अभिसमयों का उल्लंघन करने पर न्यायालय द्वारा दण्ड नहीं दिया जा सकता, कहीं ऐसा लिखा भी नहीं है कि उनका पालन आवश्यक है फिर भी उनकी मान्यता का क्या कारण है? उनके पीछे कौन सी शक्ति है जो उन्हें पुष्ट करती है?

अभिसमयों का संविधान में स्थान तथा महत्व बताइये । अथवा कानूनों और अभिसमयों में क्या अन्तर है?

अभिसमय की मान्यता डायसी के विचार-

इस विषय में प्रो0 डायसी का तर्क है कि अभिसमय और कानून एक-दूसरे पर आश्रित है। अभिसमयों का पालन न होने पर कानूनी व्यवस्था स्वयमेव छिन्न-विछिन्न हो जायेगी। उदाहरणार्थ- यदि संसद का अधिवेशन वर्ष में एक बार नहीं किया जाता तो देखने में केवल अभिसमय ही भंग होगा परन्तु वास्तव में कानून भी भंग होगा। प्रतिवर्ष संसद का अधिवेशन यदि नहीं बुलाया गया तो कानूनी समस्याएँ उत्पन्न हो जायेगी। ब्रिटेन में दो कानूनी व्यवस्थाएँ है, प्रतिवर्ष बजट की स्वीकृति होनी चाहिए। यदि संसद का अधिवेशन न बुलाया गया तो ये कानूनी व्यवस्थाएँ भंग हो जायेंगी। समस्त शासन व्यवस्था बिगड़ जायेगी।

अभिसमय की मान्यता पर लावेल का मत-

लॉवेल के मतानुसार अभिसमयों का पालन इसलिये किया जाता है, क्योंकि वे शासन संचालन के ऐसे नियम हैं जिन्हें जनमत का समर्थन प्राप्त हैं। लॉवेल के शब्दों में “अभिसमयों का पालन इसलिये होता है कि वे सदाचार संहिता अथवा खेल का नियम है।”

समाज में जिस अकेले वर्ग ने ब्रिटेन के सार्वजनिक जीवन के संचालन को अब तक पूर्णतया अपने हाथ में रखा है वह स्वयं इस प्रकार के दायित्व के प्रति विशेष रूप से संवेदनशील है। आँग का भी यही मत है कि “अभिसमयों के पीछे वास्तविक सत्ता जनमत का बल है।” यदि सुव्यवस्थित अभिसमयों का उल्लंघन होता है तो देश में प्रबल विरोध का ज्वार उठ खड़ा होगा। इसलिये सरकार और विपक्षी दल इनका पालन करने के लिये सदैव तत्पर रहते हैं। ब्रिटिश समाज परम्परावादी है। वह हर उस परम्परा से नहीं चिपका रहेगा, जिसका कोई उपयोग न हों वह उपयोगितावादी भी है। अतः केवल जनमत का समर्थन अभिसमयों की वास्तविक अनुशक्ति नहीं हो सकता।

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उपर्युक्त विवरण से स्पष्ट है कि अभिसमयों के पालन का कोई एक कारण नहीं है।वास्तव में उसके पीछे कई अनुशक्तियाँ हैं। वे इस प्रकार है-

अभिसमय की मान्यता के कारण

1.कानूनी अनुशक्ति-

अभिसमयों के पालन का एक कारण जैसा कि प्रो० डायसी ने कहा है, कानूनी अनुशक्ति है। कई अभिसमय ऐसे हैं जिनका यदि पालन न किया जाये, तो कानूनी व्यवस्थाएँ गड़बड़ा जायेगी। यह ठीक है कि संसद को उन कानूनों को भी बदल देने की शक्ति प्राप्त है। परन्तु संसद किसी कानून में अनावश्यक परिवर्तन क्यों करेगी? उदाहरणार्थ, यदि चुनाव के बाद कॉमन सभा में बहुमत दल के नेता को प्रधानमन्त्री नहीं बनाया जायेगा, तो फिर किसे प्रधानमन्त्री बनाया जायेगा। यदि किसी ऐसे व्यक्ति को, जिसे बहुमत का समर्थन प्राप्त नहीं है, प्रधानमन्त्री बना दिया जाये तो क्या शासन चल सकता है, अतः यह स्पष्ट है कि अभिसमयों के पालन का एक यही कारण है कि उनके पालन न करने से शासनतन्त्र ठप्प हो जायेगा।

2.जनमत की अनुशक्ति-

अभिसमयों के पालन के सम्बन्ध में लॉवेल का तर्क भी आंशिक रूप से सत्य है। ब्रिटेन में अभिसमयों के पालन का दूसरा कारण यह भी है कि यह सदाचार और खेल के नियम हैं। उन पर जनता की श्रद्धा हैं। उनके पीछे जनमत की अनुशक्ति है। जिस प्रकार खिलाड़ी स्वभाव से खेल के नियमों का पालन करते हैं और सामान्य व्यक्ति स्वभाव से सदाचार के नियमों का पालन करता रहता है, उसी प्रकार स्वाभाविक रूप से ब्रिटेन में अभिसमयों का पालन भी होता है।

3.ब्रिटिश स्वभाव-

अभिसमयों के पीछे ब्रिटिश समाज के स्वभाव की भी अनुशक्ति हैं। एक तो ब्रिटिश समाज परम्परावादी है और यह मानव स्वभाव भी है कि वह कुछ नियमों प्रथाओं आदि से बँधकर रहना चाहता है। न्यूमैन ने लिखा है- “अभिसमयों का पालन इसलिये नहीं होता है कि वे राज्य की सर्वोच्च विधि है बल्कि इसलिये होता है कि उनका सम्बन्ध सांविधानिक सरकार तथा प्रजातन्त्र से है, जिनसे सभी ब्रिटेनवासी सहमत है।”

4.उपयोगिता-

अभिसमयों के पालन के सम्बन्ध में एक बहुत सुन्दर तर्क संयुक्त राज्य सैनिक विद्यालय द्वारा लिखित पुस्तक ‘Contemporary Foreign Governments में दिया गया है। उसमें लिखा है- “अभिसमय इसलिये उत्पन्न हुए हैं, क्योंकि किसी समय वे बहुत लाभदायक प्रतीत हुए। क्योंकि उनका लाभ बना रहा, अतः उनकी निरन्तरता बनी रही। अब उन्हें तोड़ा नहीं जा सकता, क्योंकि वे ब्रिटिश राजनीतिक नैतिकता का अंग बन गये हैं।

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5.तर्क की अनुशक्ति-

अभिसमयों के पालन करने का कारण यह भी है कि ब्रिटेन के नेता व जनता में यह जानते हैं कि उनके पालन करने में सुव्यवस्था है और किसी प्रकार की कोई हानि नहीं है तथा अभिसमयों को तोड़ने की कोई आवश्यकता नहीं है। बिना आवश्यकता के पुराने नियमों को चाहे वे लिखित हो अथवा अलिखित- तोड़ने में कोई तर्क नहीं है। ब्रिटिश समाज एक तार्किक समाज है। वह अभिसमयों का आदर और सम्मान करता है। वह नका पालन करता है। परन्तु यदि वह अभिसमय सांविधानिक विकास के मार्ग में बाधा बनने लगे तो वह उन्हें तोड़ भी देता है। जैसे लार्ड होम, कॉमन सभा के सदस्य न होने पर भी प्रधानमन्त्री बने। किसी महत्वपूर्ण अभिसमय का उल्लंघन होने पर संसद उसे कानूनी रूप प्रदान कर देती है।

6.उन्नति की अभिलाषा-

स्ट्रांग का मत है कि अभिसमयों के पीछे ब्रिटिश समाज की यह भावना निहित है कि वे उन्नति व प्रगति करना चाहते हैं। समाज जानता है कि अभिसमयों का पालन करने के शासन व्यवस्थित रूप से चल रहा है। समाज में शान्ति हैं। प्रगति के सुअवसर विद्यमान हैं। अतः वे उन अभिसमयों को तोड़ना उचित नहीं मानते।

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