अपंग बालकों का समूह
अपंग अथवा विकलांग बालकों को असमर्थ वालक भी कहा जाता है। विकलांग अद्यया असमर्थ बालकों से आशय उन बालकों से है, जिसमें सामान्य बालकों की तुलना में कोई शारीरिक, मानसिक, संवेगात्मक एवं सामाजिक दोष होता है तथा जिनके कारण उनकी उपलब्धियाँ अपूर्ण रह जाती है। ऐसे बालक अन्य सामान्य बालकों से शारीरिक, मानसिक करते अथवा संवेगात्मक दृष्टि से भिन्न या विशिष्ट होते हैं। विकलांगता के अर्थ को स्पष्ट हुए रघुनाथ सफाया ने लिखा है- “असम (विकलांग) बालक विशेषतायें लिए हुए हैं। प्रथम उदाहरण में वह शारीरिक अथवा मानसिक अभाव लिए हुए है। यह उनके जीवन की सामान्य सन्तुष्टि के मार्ग में आते हैं, क्योंकि यह उन्हें कुछ मूलभूत आवश्यकताओं से वंचित करते हैं यथा शारीरिक सुख, प्रभाव, सुरक्षा, एवं स्वीकृति। वह दूसरों की नजर में हीन रहते है। अतः उनमें हीनभावना परकर जाती है। गरीबी, अस्वस्थता अथवा सामाजिक भेदभाव उनको दुर्दशा की ओर बढ़ाता है। वह या तो अन्तर्मुखी हो जाते है या आक्रामक अथवा वे यह तो समाज विरोधी क्रियाओं में भाग ले सकते है या उनमें मानसिक रूप से रोग प्रवृत्तियाँ विकसित हो सकती है। कोठारी आयोग ने विकलांग बालकों को तीन श्रेणियों में विभक्त किया है
- शारीरिक दृष्टि से विकलांग अंधे, लगड़े, गूंगे तथा बहरे बालक।
- बौद्धिक दृष्टि से विकलांग जन्मजात अल्प एवं मंद बुद्धि बालक।
- सामाजिक कारणों से विकलांग वह बालक जो समाज में सही एवं समुचित प्रकार है परिष्कृत नहीं किये जाने के कारण असामान्य हो गए हैं।
शिक्षा परिभाषा कोष के अनुसार शारीरिक रूप से विकलांग बालक शारीरिक रूप से दोष प्रसित व्यक्ति होते हैं। ऐसे व्यक्ति किसी न किसी अंग में कोई असामान्य कमी होती है, जिसके कारण वह सामान्य व्यक्ति की तरह दैनिक कार्य नहीं कर पाता। अपर बालकों की मांशपेशियों, जोड़ो या हड्डियाँ कार्य नहीं करते हैं लेकिन यह बालक, सामान्य बालकों से उच्च बुद्धि के भी हो सकते है। अपने शारीरिक दोषों के कारण, सामाजिक समायोजन नहीं कर पाते है। यह दोष जन्मजात, वंशानुक्रम तथा वातावरण से प्राप्त होते हैं। इसके परिणामस्वरूप उनमें हीनता एवं असहायता की भावना का विकास हो जाता है तथा वह स्वयं को सामाजिक जीवन से पृथक अनुभव करते हैं। इसी कारण सामान्य निर्देशन अपंग व्यक्तियों हेतु प्रभावशाली नहीं हो पाता है। अतः इन बालको हेतु निर्देशन कार्यक्रम की रूपरेखा का निर्माण करते समय, इनका
जेण्डर संवेदनशीलता से क्या आशय हैं?
वर्गीकरण किया जाना भी आवश्यक है यथा जन्मजात अपंग, जन्म के उपरान्त भी इनके अन्दर सुधार किया जा सकता है।
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